छोड़कर घर-बार, छोड़कर गांव
त्यागकर वो सुहाना परिवेश
चन्द रुपयों के लालाच में
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
क्यों मैनें बदला लिया खुद को
क्यों बदली बोली, भाषा, भेष
बुढ़ी मां, बुढ़े पिता को छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
कौई हाथ, ना कंधा सहारे को
ना ही प्रेम का है नामोनिशां
प्यार भरी बाहें, हथेली छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
बचपन, जवानी सब वहीं बीता
वो खेत, चौपाल थे अपना देश
वो झूले, गांव के मेले छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
कौई भी नहीं यहां पे अपना
गांव से अब भी आते संदेश
अपने लोग वो मिट्टी छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
सबने रोका नामानी किसीकी
कसमों को तोड़, पहुंचाई ठेस
स्वार्थ में इतना अंधा होकर
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
सबको छोड़ा पैसे की चाहत में
खो दिया सब, कुछ नहीं शेष
बस अब यहीं सोच रोता हूं
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
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1 टिप्पणियाँ:
गौरव केवल आपको नाम से नहीं जानता
अच्छा लिखते आप हैं मै तो यही मानता
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