क्या मैं लिख सकता हूं...?

मैं यह सोच रहा हूं कि क्या हमें किसी की बढ़ाई करनी चाहिए या नहीं? ...सब कहते हैं करनी चाहिए, बच्चों को भी हम यही सिखाते हैं कि दूसरों का सम्मान करो, उनका आदर करो, पर क्या जब किसी व्यक्ति की कुछ लोग निंदा करते हों, और वो हमारे हिसाब से सही हो, तो क्या हमें उसका सम्मान करना चाहिए? उसकी बढ़ाई करनी चाहिए? उसके कार्यों को सराहना चाहिए? क्या हमें इतना हक है? कहीं ये अपराध तो नहीं? कहीं इसके लिए हमें सजा तो नहीं मिलेगी? ...मेरी ये चिंता यूंही नहीं है, दरअसल बीजेपी की चिंतन बैठक में पहले ही दिन हुए एक बड़े निर्णय ने मुझे ये सब सोचने पर मजबूर कर दिया। बीजेपी नेता जसवंत सिंह की जिन्ना पर अच्छी राय के बाद, पार्टी से उन्हे निकाले जाने के बाद ये सब सवाल मेरे दिमाग में आ रहे हैं। कि क्या वास्तव में किसी की बढ़ाई करना, किसी का सम्मान करना अपराध है? किसी के विषय में अपनी व्यक्तिगत राय रखना जुर्म है? अगर है तो क्यों है? अगर नहीं है, तो जसवंत सिंह को इसकी सजा क्यों दी गई? या सिर्फ राजनीति में ही किसी दूसरे का सम्मान करना अपराध है? सामान्य जिंदगी में नहीं? क्या जिन्ना के बारे में अच्छी राय रख कर जसवंत सिंह ने कोई जुर्म कर किया? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब नहीं रही? अच्छा क्या हमें सोचने और अपने विचारों को व्यक्त करने का भी हक नहीं है? अगर हम किसी पार्टी या दल से जुड़े हों, तो क्या हमें भी वैसे ही सोचना चाहिए जैसे कि पार्टी के विचार हो? मैं सोच रहा हूं कि मेरी कॉलोनी में एक गरीब परिवार है.. कॉलोनी के ज्यादातर लोग उन्हे पसंद नहीं करते, लेकिन मैं तो उन्हे पसंद करता हूं, उनके घर जाता हूं, खाता-पीता हूं...उनका सम्मान करता हूं, पर क्या अब मैं भी उनकी बुराई करनी शुरु कर दूं, नहीं तो क्या मुझे इसकी सजा मिलेगी..? कहीं मुझे कॉलोनी से तो नहीं निकाल दिया जाएगा? क्या मुझे उनके बारे में वैसा ही सोचना चाहिए, जैसा कि बाकी लोग सोचते हैं? क्या इस डर से मुझे अपने दिमाग का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए? क्योंकि जब जसवंत सिंह जैसे अनुभवी व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने के लिए इतनी बड़ी सजा मिली है तो क्या मुझ मामूली अदमी को कोई सजा नहीं मिलेगी? अच्छा एक सबसे अहम बात यह भी है कि क्या मुझे (ये सब जो मैं लिख रहा हूं) लिखने की स्वतंत्रता है? क्या मुझे और लिखना चाहिए....नहीं...या हां....सच मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, कृप्या आप ही कुछ बताइये।

1 टिप्पणियाँ:

Vinay ने कहा…

हम सदैव देशहित देखते हैं और सभी देश ऐसा करते हैं। इसे अभिव्यक्ति से जोड़कर देखना मेरी दृष्टि से उचित नहीं है।
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मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव