धोनी की शादी में पत्रकारों की फजीहत
पत्रकारों की विश्वसनीयता से खिलवाड़ ना करें ऐड मेकर
साथ सब आइये...

हो चुका बहुत अब, कुछ कर दिखाना चाहिए
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये
छोड़ भी दो आस, कसमें वादे-झूठे हैं सब
इनपर यूं भरोसा कर, चोट ना अब खाइये
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये
जिन्हे मजबूत समझा था, वो पेड़ ढह गए
शाखों को जोड़-जोड़ कर, तना ठोस बनाइये
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये
चट कर गए सारे फल-फूल, काले पंक्षी सब
रह गई हैं पत्तियां, इन्हे झड़ने से बचाइये
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये
माली ने धोखा दिया, बागवान ने की बेवफाई
सभंल जाओ, इस फरेब पर, ना अश्क बाहिइये
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये
होती थी हक की बात, निकलती थी सारी भड़ास
बिक गया वो माध्यम, उसे अब भूल जाइये
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये
रहना है सबको साथ, थामे रहेंगे हाथों में हाथ
छुपी है संघर्ष में जीत, बस तू हिम्मत ना हारिये
मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये ।
क्या मैं लिख सकता हूं...?
निकाले जाने के बाद ये सब सवाल मेरे दिमाग में आ रहे हैं। कि क्या वास्तव में किसी की बढ़ाई करना, किसी का सम्मान करना अपराध है? किसी के विषय में अपनी व्यक्तिगत राय रखना जुर्म है? अगर है तो क्यों है? अगर नहीं है, तो जसवंत सिंह को इसकी सजा क्यों दी गई? या सिर्फ राजनीति में ही किसी दूसरे का सम्मान करना अपराध है? सामान्य जिंदगी में नहीं? क्या जिन्ना के बारे में अच्छी राय रख कर जसवंत सिंह ने कोई जुर्म कर किया? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब नहीं रही? अच्छा क्या हमें सोचने और अपने विचारों को व्यक्त करने का भी हक नहीं है? अगर हम किसी पार्टी या दल से जुड़े हों, तो क्या हमें भी वैसे ही सोचना चाहिए जैसे कि पार्टी के विचार हो? मैं सोच रहा हूं कि मेरी कॉलोनी में एक गरीब परिवार है.. कॉलोनी के ज्यादातर लोग उन्हे पसंद नहीं करते, लेकिन मैं तो उन्हे पसंद करता हूं, उनके घर जाता हूं, खाता-पीता हूं...उनका सम्मान करता हूं, पर क्या अब मैं भी उनकी बुराई करनी शुरु कर दूं, नहीं तो क्या मुझे इसकी सजा मिलेगी..? कहीं मुझे कॉलोनी से तो नहीं निकाल दिया जाएगा? क्या मुझे उनके बारे में वैसा ही सोचना चाहिए, जैसा कि बाकी लोग सोचते हैं? क्या इस डर से मुझे अपने दिमाग का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए? क्योंकि जब जसवंत सिंह जैसे अनुभवी व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने के लिए इतनी बड़ी सजा मिली है तो क्या मुझ मामूली अदमी को कोई सजा नहीं मिलेगी? अच्छा एक सबसे अहम बात यह भी है कि क्या मुझे (ये सब जो मैं लिख रहा हूं) लिखने की स्वतंत्रता है? क्या मुझे और लिखना चाहिए....नहीं...या हां....सच मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, कृप्या आप ही कुछ बताइये।किस का कमाल...
सुना है कि भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज इरफान पठान को कोलकाता के एक समारोह में एक 'मिस' ने 'किस' करने की कोशिश की। हांलाकि इरफान ने तुरंत ही उन मोहतरमा को पकड़, खुद से अलग कर दिया लेकिन जल्द ही शायद वो ये भी समझ गए कि उन्होने एक खूबसूरत मौका खो दिया! उन्होने अपनी मंगेतर शिवांगी का हवाला देते हुए यह भी कह दिया कि "शिवांगी मेरा गला काट देगी" इसका मतलब अगर शिवांगी का डर नहीं होता, तो वो उस लड़की की (शायद खुद की भी) ये इच्छा पूरी कर देते!
क्यों आया मैं प्रदेश...
छोड़कर घर-बार, छोड़कर गांव
त्यागकर वो सुहाना परिवेश
चन्द रुपयों के लालाच में
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
क्यों मैनें बदला लिया खुद को
क्यों बदली बोली, भाषा, भेष
बुढ़ी मां, बुढ़े पिता को छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
कौई हाथ, ना कंधा सहारे को
ना ही प्रेम का है नामोनिशां
प्यार भरी बाहें, हथेली छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
बचपन, जवानी सब वहीं बीता
वो खेत, चौपाल थे अपना देश
वो झूले, गांव के मेले छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
कौई भी नहीं यहां पे अपना
गांव से अब भी आते संदेश
अपने लोग वो मिट्टी छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
सबने रोका नामानी किसीकी
कसमों को तोड़, पहुंचाई ठेस
स्वार्थ में इतना अंधा होकर
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
सबको छोड़ा पैसे की चाहत में
खो दिया सब, कुछ नहीं शेष
बस अब यहीं सोच रोता हूं
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश
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मास्क की बढ़ती मांग...
लेकिन अब स्वाइन फ्लू के आ जाने से मास्क भी ब्लैक में मिलने लगे हैं। इस वजह से मास्क बेचने वालों की खूब आमदनी हो रही है। जो मास्क 3 से 5 रुपय में मिलता था वो अब 20 से 25 रुपए तक में बिक रहा है। और जो मास्क 20 से 25 रुपय में बिकता था वो अब 150 से 200 रुपय में बिक रहा है। और तो और मास्क N-95 तो बाजारों से गायब ही हो गया है। और ऐसा नहीं है कि सरकार का मास्क की इस कालाबाजारी पर कौई ध्यान ही नहीं है, बल्कि सरकार तो इस कालाबाजारी को रोकने पर स्वाइन फ्लू को रोकने से ज्यादा ध्यान दे रही है! यहां तक की देश के स्वास्थ्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि आम लोगों को मास्क पहनने की जरुरत ही नहीं है। और साथ ही स्वाइन फ्लू से भी डरने की कौई जरुरत नहीं है! अब आप ही बताईये मास्क की इस अवैध बिक्री को रोकने के लिए सरकार और करे भी तो क्या करे..? लेकिन लोग हैं कि मानते ही नहीं मास्क के पीछे पागल हुए जा रहे हैं, यहां तक की ब्लैक में भी खरीद रहें हैं। यह सब देख कर मैनें तो फैसला कर लिया है कि पैसा कमाना है तो मास्क की फैक्ट्री खोली जाए... उम्मीद है कि दिन दोगुनी, रात चौगुनी कमाई होगी। वैसे भी अपने देश में स्वास्थ्य इंतजाम ऐसे हैं कि कौई ना कौई बिमारी तो आती ही रहती है! मतलब मास्क की मांग मुश्किल ही कम होगी, अगर आपको भी मास्क की जरुरत है तो अभी से ऑडर बुक करा दीजिए...कम दामों मे दे दूंगा। याद रखिएगा ऑफर केवल सीमित समय के लिए है।
