साथ सब आइये...




हो चुका बहुत अब, कुछ कर दिखाना चाहिए

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये

छोड़ भी दो आस, कसमें वादे-झूठे हैं सब

इनपर यूं भरोसा कर, चोट ना अब खाइये

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये

जिन्हे मजबूत समझा था, वो पेड़ ढह गए

शाखों को जोड़-जोड़ कर, तना ठोस बनाइये

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये

चट कर गए सारे फल-फूल, काले पंक्षी सब

रह गई हैं पत्तियां, इन्हे झड़ने से बचाइये

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये

माली ने धोखा दिया, बागवान ने की बेवफाई

सभंल जाओ, इस फरेब पर, ना अश्क बाहिइये

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये

होती थी हक की बात, निकलती थी सारी भड़ास

बिक गया वो माध्यम, उसे अब भूल जाइये

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये

रहना है सबको साथ, थामे रहेंगे हाथों में हाथ

छुपी है संघर्ष में जीत, बस तू हिम्मत ना हारिये

मिलकर लड़ेंगे हक की लड़ाई, साथ सब आइये ।

क्या मैं लिख सकता हूं...?

मैं यह सोच रहा हूं कि क्या हमें किसी की बढ़ाई करनी चाहिए या नहीं? ...सब कहते हैं करनी चाहिए, बच्चों को भी हम यही सिखाते हैं कि दूसरों का सम्मान करो, उनका आदर करो, पर क्या जब किसी व्यक्ति की कुछ लोग निंदा करते हों, और वो हमारे हिसाब से सही हो, तो क्या हमें उसका सम्मान करना चाहिए? उसकी बढ़ाई करनी चाहिए? उसके कार्यों को सराहना चाहिए? क्या हमें इतना हक है? कहीं ये अपराध तो नहीं? कहीं इसके लिए हमें सजा तो नहीं मिलेगी? ...मेरी ये चिंता यूंही नहीं है, दरअसल बीजेपी की चिंतन बैठक में पहले ही दिन हुए एक बड़े निर्णय ने मुझे ये सब सोचने पर मजबूर कर दिया। बीजेपी नेता जसवंत सिंह की जिन्ना पर अच्छी राय के बाद, पार्टी से उन्हे निकाले जाने के बाद ये सब सवाल मेरे दिमाग में आ रहे हैं। कि क्या वास्तव में किसी की बढ़ाई करना, किसी का सम्मान करना अपराध है? किसी के विषय में अपनी व्यक्तिगत राय रखना जुर्म है? अगर है तो क्यों है? अगर नहीं है, तो जसवंत सिंह को इसकी सजा क्यों दी गई? या सिर्फ राजनीति में ही किसी दूसरे का सम्मान करना अपराध है? सामान्य जिंदगी में नहीं? क्या जिन्ना के बारे में अच्छी राय रख कर जसवंत सिंह ने कोई जुर्म कर किया? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब नहीं रही? अच्छा क्या हमें सोचने और अपने विचारों को व्यक्त करने का भी हक नहीं है? अगर हम किसी पार्टी या दल से जुड़े हों, तो क्या हमें भी वैसे ही सोचना चाहिए जैसे कि पार्टी के विचार हो? मैं सोच रहा हूं कि मेरी कॉलोनी में एक गरीब परिवार है.. कॉलोनी के ज्यादातर लोग उन्हे पसंद नहीं करते, लेकिन मैं तो उन्हे पसंद करता हूं, उनके घर जाता हूं, खाता-पीता हूं...उनका सम्मान करता हूं, पर क्या अब मैं भी उनकी बुराई करनी शुरु कर दूं, नहीं तो क्या मुझे इसकी सजा मिलेगी..? कहीं मुझे कॉलोनी से तो नहीं निकाल दिया जाएगा? क्या मुझे उनके बारे में वैसा ही सोचना चाहिए, जैसा कि बाकी लोग सोचते हैं? क्या इस डर से मुझे अपने दिमाग का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए? क्योंकि जब जसवंत सिंह जैसे अनुभवी व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने के लिए इतनी बड़ी सजा मिली है तो क्या मुझ मामूली अदमी को कोई सजा नहीं मिलेगी? अच्छा एक सबसे अहम बात यह भी है कि क्या मुझे (ये सब जो मैं लिख रहा हूं) लिखने की स्वतंत्रता है? क्या मुझे और लिखना चाहिए....नहीं...या हां....सच मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, कृप्या आप ही कुछ बताइये।

किस का कमाल...


सुना है कि भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज इरफान पठान को कोलकाता के एक समारोह में एक 'मिस' ने 'किस' करने की कोशिश की। हांलाकि इरफान ने तुरंत ही उन मोहतरमा को पकड़, खुद से अलग कर दिया लेकिन जल्द ही शायद वो ये भी समझ गए कि उन्होने एक खूबसूरत मौका खो दिया! उन्होने अपनी मंगेतर शिवांगी का हवाला देते हुए यह भी कह दिया कि "शिवांगी मेरा गला काट देगी" इसका मतलब अगर शिवांगी का डर नहीं होता, तो वो उस लड़की की (शायद खुद की भी) ये इच्छा पूरी कर देते! वैसे इस 'किस' के 'मिस' होने से कुछ धर्म के ठेकेदारों को बहुत दुख हुआ! क्योंकि अगर 'किस' होती तो मुद्दा मिलता... और मुद्दा मिलता तो बयान-बाजी होती...और बयान-बाजी होती तो उन्हे टीवी पर आने का मौका मिल जाता। मुद्दे की बात तो ये है कि इस 'मिस' ने तो 'किस' को 'मिस' कर दिया लेकिन बहुत से मौके ऐसे भी आए हैं जब किसी ने 'किस' में कुछ 'मिस' नहीं किया। इतिहास गवाह है जब भी किसी ने किसी को 'किस' किया है, फायदा ही हुआ है... कई बार तो लोगों की किस्मत ही बदल गई! कौई देश में फेमस हो गया, तो कौई विदेश में... विश्वास नहीं होता तो पूछ लिजिए राखी सांवत से... वैसे राखी बहुत शर्मीली हैं, इसलिए अगर इस बारे में कुछ नहीं बताए तो निराश होने की कौई जरुरत नहीं हैं, आप सीधे जाइए और पूछ लिजिए शिल्पा शेट्टी से... अगर दुर्भाग्य से वो भी सच ना बताए तो भी दुखी मत होईएगा, इस बार आप पूछिएगा अपनी बेबो (करीना कपूर) से... अगर वो भी सच ना बताए तो एक काम करना, इन सबको पकड़ कर 'सच का सामना' में ले आना, कसम से सारे राज खुल जाएंगे। एक बात और...इन 'किस' के किस्सों से हमारे देश में हर साल आने वाले लाखों विदेशी पर्यटकों को भी खासा फायदा होगा! भारत आने पर उन्हे अक्सर ये बताया जाता है कि यहां खुले आम 'किस' करना मना है इसलिए वो बेचारे यहां आकर ठीक से 'प्यार-मौहब्बत' नहीं कर पाते! इन 'किस' के किस्सों से उनके भी हौसलें बुलंद होंगे और वो भी खुलकर 'किस' करेंगे, अपने देश को बिल्कुल नहीं 'मिस' करेंगे। सच तो यह है कि इतने सब के बाद तो अब अपनी भी तबीयत फेमस होने की कर रही हैं, पर अपनी ऐसी किस्मत कहां... खैर हम तो बस यहीं कहेंगे कि 'किस' और 'किस' करने वाली 'मिस'... दोनों को हमारी और से ढेरों शुभकामनाएँ!

क्यों आया मैं प्रदेश...



छोड़कर घर-बार, छोड़कर गांव
त्यागकर वो सुहाना परिवेश
चन्द रुपयों के लालाच में
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश



क्यों मैनें बदला लिया खुद को
क्यों बदली बोली, भाषा, भेष
बुढ़ी मां, बुढ़े पिता को छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश



कौई हाथ, ना कंधा सहारे को
ना ही प्रेम का है नामोनिशां
प्यार भरी बाहें, हथेली छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश



बचपन, जवानी सब वहीं बीता
वो खेत, चौपाल थे अपना देश
वो झूले, गांव के मेले छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश



कौई भी नहीं यहां पे अपना
गांव से अब भी आते संदेश
अपने लोग वो मिट्टी छोड़
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश



सबने रोका नामानी किसीकी
कसमों को तोड़, पहुंचाई ठेस
स्वार्थ में इतना अंधा होकर
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश



सबको छोड़ा पैसे की चाहत में
खो दिया सब, कुछ नहीं शेष
बस अब यहीं सोच रोता हूं
आखिर क्यों आया मैं प्रदेश

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

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मास्क की बढ़ती मांग...

रसोई गैस, मिट्टी का तेल, फिल्म के टिकट और मास्क......ये सब अब एक ही कैटागिरी में आ गए हैं, अब आप सोच रहे होंगे कि भला इनमें ऐसी क्या समानता है कि ये एक कैटागिरी में आ गए हैं। अरे भई समानता ये है कि ये सब ब्लैक में मिलने वाली चीजें हैं। पूरे भारत में आपको हर जगह ये चीजें ब्लैक में बिकती मिल जाएंगी। गैस, तेल, टिकट तो पहले से ही ब्लैक में बिकते आ रहे हैं लेकिन अब स्वाइन फ्लू के आ जाने से मास्क भी ब्लैक में मिलने लगे हैं। इस वजह से मास्क बेचने वालों की खूब आमदनी हो रही है। जो मास्क 3 से 5 रुपय में मिलता था वो अब 20 से 25 रुपए तक में बिक रहा है। और जो मास्क 20 से 25 रुपय में बिकता था वो अब 150 से 200 रुपय में बिक रहा है। और तो और मास्क N-95 तो बाजारों से गायब ही हो गया है। और ऐसा नहीं है कि सरकार का मास्क की इस कालाबाजारी पर कौई ध्यान ही नहीं है, बल्कि सरकार तो इस कालाबाजारी को रोकने पर स्वाइन फ्लू को रोकने से ज्यादा ध्यान दे रही है! यहां तक की देश के स्वास्थ्य मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि आम लोगों को मास्क पहनने की जरुरत ही नहीं है। और साथ ही स्वाइन फ्लू से भी डरने की कौई जरुरत नहीं है! अब आप ही बताईये मास्क की इस अवैध बिक्री को रोकने के लिए सरकार और करे भी तो क्या करे..? लेकिन लोग हैं कि मानते ही नहीं मास्क के पीछे पागल हुए जा रहे हैं, यहां तक की ब्लैक में भी खरीद रहें हैं। यह सब देख कर मैनें तो फैसला कर लिया है कि पैसा कमाना है तो मास्क की फैक्ट्री खोली जाए... उम्मीद है कि दिन दोगुनी, रात चौगुनी कमाई होगी। वैसे भी अपने देश में स्वास्थ्य इंतजाम ऐसे हैं कि कौई ना कौई बिमारी तो आती ही रहती है! मतलब मास्क की मांग मुश्किल ही कम होगी, अगर आपको भी मास्क की जरुरत है तो अभी से ऑडर बुक करा दीजिए...कम दामों मे दे दूंगा। याद रखिएगा ऑफर केवल सीमित समय के लिए है।

उत्तर प्रदेश के किसानों की बल्ले-बल्ले...!



उत्तर प्रदेश के किसानों की इन दिनों बल्ले-बल्ले हो रही है! मानो खुशी से पागल हुए जा रहे हैं! सब मुख्यमंत्री जी का शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे हैं। अरे.....कहीं आप यह तो नहीं सोच रहें हैं कि मैं ये क्या अनाप-सनाप लिख रहा हूं, राज्य के 70 में से लगभग 58 जिलों में सूखा होने के बावजूद ऐसा कैसे संभव है...? चलिए मैं आपको बताता हूं कि इन किसानों कि खुशी का राज क्या है। दरअसल पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की सरकार ने राज्य के पार्कों आदि के निर्माण और रख रखाव के लिए लगभग सवा चार सौ करोड़ का बजट तय किया है जबकि प्रदेश के किसानों के सूखे से निपटने के लिए ढाई सौ करोड़ का ही बजट बनाया है ऐसे में भला किसान बेचारे करते तो क्या करते..? इसलिए उन्होने खेतों को छोड़कर इन पार्कों में ही खेती करने का मन बना लिया है! क्योंकि ऐसा करने के कई फायदे होंगे...जैसे पार्कों में किसानों की फसल का ध्यान रखने के लिए उनके अलावा सैकड़ों कर्मचारी भी मौजूद रहेंगे, साथ ही पार्कों के चारों तरफ से घिरे होने के कारण फसल भी सुरक्षित रहेगी, वैसे भी पार्कों में लगी हाथियों की बड़ी-बड़ी मुर्तियों को देखकर पक्षी भी फसल बर्बाद नहीं करेंगे, और खेतों में पुतले वगैरहा लगाने की भी कौई जरुरत नहीं पड़ेगी, साथ ही इन हाथियों से खेती में मददगार जानवरों को भी कंपनी मिल जाएगी! फसलों को सिचाईं के लिए भी भरपूर पानी मिलेगा, और वैसे भी उम्मीद यही की जा रही है कि इन पार्कों के लिए तो सरकार का खजाना समय-समय पर खुलता ही रहेगा! कुल मिलाकर किसानों का ये मानना है कि इससे सुरक्षित और अच्छी खेती कहीं और हो ही नहीं सकती! हां किसानों को इतनी सुविधाओं के बदले इतना जरुर करना पड़ सकता है कि शायद उन्हे खेती करने नीले कपड़ों में आना पड़े तभी तो पार्कों के वातावरण में सही से घुल मिल सकेंगे। रही बात खेतों कि तो खेतों पर तो भूमाफिया धीरे-धीरे कब्जा जमा ही रहे हैं! धीरे-धीरे सब खेत पूंजीपतियों के कारखानों, बिल्डिंगों में बदल ही जाएगें!...सच इसे कहते हैं असली तरक्की! अब समझे आप कि आखिर इतने कुछ होने के बाद तो किसानों का खुशी से पागल होना लाजमी ही है ना!

'वो और मैं'


वो और मैं बहुत करीब आ गए
एक-दूजे में एक-दूजे की जान समाई है !
कुछ ज्यादा ही खास रिश्ता है हममें
ना मैं और ना वो मेरे बिन रह पाई है !!
पहले कभी-कभी ही होती थी मुलाकात
अब एक पल की भी नहीं जुदाई है !
कभी दिन ही कटता था उसके साए में
अब ना जाने कितनी रातें साथ बिताई हैं !!
उसने बड़े सलीके से पहचाना मेरे दर्द को
मैनें भी उसे खुद से जुड़ी हर बात बताई है !
मेरा साया बनकर हर वक्त साथ रहती है
जमाने ने सताया, उसने वफा निभाई है !!
उसके बिना मैं जब कभी, कहीं भी गया
वो साया बनकर पीछे-पीछे चली आई है !
एक लम्हा भी तन्हां नहीं छोड़ती मुझे
ऐसी मौहब्बत भला कब किसने निभाई है !!
कौई कहता हैं इस रिश्ते को बेशर्मी,
कुछ लोग कहते हैं इसे कि बेहय्याई हैं !
मेरे जिस्म में रुह बनकर रहती है हमेशा
मेरे साथ, मेरी अपनी, वो मेरी 'तन्हाई' है !!

"वो जब मेरे पास थी"


वो जब मेरे पास थी, मेरी जीने की वजह खास थी
परेशा तन्हां-तन्हां सा रहता था उसके आने से पहले !
वो आई जिंदगी में तो महसूस हुआ मुझको
मेरे बुझते हुए जीवन में वो रोशनी की आस थी !!
उसके आते ही मानों जीने की चाह उमड़ पड़ी
जवां हो गईं उम्मीदें, जी उठे मेरे सपने सारे !
एक वो ही तो थी मेरी खुशियों की वजह
अब उसके लिए ही मेरी हर धड़कन, सांस थी !!
मेरी बात उसी पर शुरु, उसी पर खत्म होती थी
आंखों को उसके सिवा कौई नजारा मंजूर ही ना था !
दिलो-दीमाग पर मेरे हर पल वो ही छाई थी
पल्कों पर उसके ख्वाब, नजरों में उसकी प्यास थी !!
खुशियों में ही नहीं, हर गम में भी मेरे साथ थी
एक-दूजे के दिलों में रहते थे, रुह बनकर हमेशा !
कहती थी दुनिया छोड़ दूंगी, तुम्हे ना छोड़ूंगी कभी
सबसे खुशमसीब हूं मैं, इसका शास्वत एहसास थी !!
आज फिर से अकेला हूं मैं, मुझे छोड़ वो जा चुकी है
मेरे अपनो को है, मुझे उससे कौई गिला-सिकवा नहीं !
मेरी रगों में हर पल खून बनकर बहती है वो
मैने ही शायद गलात कहा "वो जब मेरे पास थी" !!

जूते ने तराशी नई संभावनाए !


पिछले कुछ समय में जूते ने जो तरक्की की है वो वास्तव में काबिले तारीफ है। आज जूते की पॉवर इतना बढ़ गयी है कि अच्छो-अच्छो के मन में जूते का डर बैठ गया है। जो काम जूता करा रहा है वो काम बडे़-बडे़ नही करा पाते। जूता बिना लाइसेंस का एक घातक हथियार बन गया है। दरअसल 14 दिसंबर 2008 का दिन जूते के लिए एक ऐतिहासिक दिन लेकर आया। जूते ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि अचानक उसकी किस्मत इतनी बदल जाएगी। असल में ये वो दिन है जिस दिन इराकी पत्रकार मुंतजर अली जैदी ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश पर जूता दे मारा था। इस घटना ने जूते को एक नया जन्म दे डाला। उसे एक नया और बेहतर मुकाम हासिल करा दिया।
जूते की इस कामयाबी ने मेरे एक व्यापारी मित्र को इतना प्रभावित किया कि उन्होने इसमें नयी संभावनाए तलाशनी शुरु कर दी। ये जनाब जूते का एक नयी कारखाना खोलने जा रहे है ! जिसमे स्पेशल क्वालिटी के उंम्दा जूते तैयार किए जाएंगे। मगर ये जूते पैरों की नहीं बल्की हाथों की शान बढाएंगे। कहने का मतलब इनका उपयोग पहनने के लिए नही बल्कि केवल मारने के लिए किया जाएगा। आप इन्हे मारकर किसी का भी विरोध कर सकते है! इसमें दो तरह के जूते बनाए जाएंगे, एक वीआईपी लोगों के लिए और दूसरे वीवीआईपी लोगों के लिए! इन जूतों को बनाने के लिए मखमल, रोशम, मोती, चंदन जैसी तमाम बहुमुल्य चीजों का उपयोग किया जाएगा। जूतों के दोनो तरफ फर के पर भी लगाए जाएंगे। जिससे ये हवा में उड़ते हुए दूर तक जाए। वैसे एक ट्रेनिंग सेन्टर खोलने की भी योजना बनाई जा रही है। जिसमे गोला फेंक की तरह जूते फेंकने का पशिक्षण दिया जाएगा। इन जूतों का प्रमोशन जे.जे. से करवाया जाएगा, अरे जे.जे. बोले तो जैदी और जरनैल। अगर ये मान जाते है तो जैदी से इंटरनेशनल लेवल पर और जरनैल से नेशनल लेवल पर प्रचार कराया जाएगा।
इन जूतों के लिए एक म्युजियम भी बनाया जाएगा, जिसमे वीआईपी और वीवीआईपी लोगों पर पडने वाले सारे जूते रखे जाएंगे ! और उससे पडने वाले फर्क को भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। साथ ही मैडम तुषार म्युजियम की तर्ज पर, एक म्युजियम में इन्हे मारने वालों की शान में उनके मोम के पुतले भी लगाए जाएंगे! विरोध जताने के इस नए तरीके से बहुत फायदा हो रहा है। इस विरोध का असर तत्काल प्रभाव से हो रहा है, और यह शूजमैन जरनैल साबित भी कर चुके हैं। वैसे खास बात यह है कि इन जूतों का शिकार नेता ही हो रहे हैं। लोग उन्हे जूते मार-मार कर विरोध जता रहे है। विरोध के इस तरीके का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि इससे शांति बढ रही है! क्योंकि इसमे ना तो नारेबाजी का शोर है और ना ही लोगों की भीड़। एक अकेला आदमी और अकेला जूता ही प्रभावी ढंग से काम कर रहा है। हालांकि यह अभी तक किसी को लगा नही है, पर बिना लगे भी यह ऐसी चोट दे रहा है, जिसका घाव भरे नहीं भर रहा है। बीजेपी के पीएम इन वेटिंग (अगले चुनाव के) के मन में तो इस जूते का डर इस कदर बैठ गया है कि उनकी सभाओं में उनके मंच के आगे जाल तक लगाया जा रहा है। नेताओं के द्वारा जूते से बचने की हर संभव कोशिश की जा रही है। और आने वाले समय में ऐसा भी हो सकता है कि कुछ नेता अपनी सभाओं में लोगों के नंगे पैर आने का फरमान जारी कर दें, ना रहेगा बास और ना बजेगी बांसूरी।
वैसे ये जूता रोजगार भी बहुत बढा रहा है। जूते की इस अप कमिंग फैक्टरी में तो भर्तीयां होंगी ही, साथ ही ट्रेनिंग सेन्टर, म्युजियम, जाल आदि से निश्चित रुप से रोजगार बढेगा। आईटी वालों ने भी जूतों से फायदा उठाते हुए कई ऐसे गेम बना दिए हैं जिसमें आप घर बैठकर किसी नेता को जूते मार सकते हैं। निशाना सही लगने पर विजेता भी बन सकते हैं। इन गेमों में बच्चे जमकर जूते बजा रहे है और अभी से जूते मारने की प्रेक्टिस कर रहे है इससे मन की भड़ास तो निकल ही रही है साथ ही निशाना भी सध ही रहा है! रही बात हम पत्रकारों की तो हमे तो मशाला मिल ही रहा है। जिस दिन एक बार भी जूता चल जाता है हम पूरे दिन उसे चलाते ही रहते है। जिससे टीआरपी तो बढ़ ही रही है और नेताओं के साथ-साथ दर्शक भी जूते का महत्व अच्छी तरह समझ रहे हैं। और सच तो यह है कि लोग जूते में दिलचस्पी दिखाने लगे हैं। शायद तभी आपने भी यह व्यंग पढ़ा।
(21 अप्रेल 2009 को लिखा गया)

"झूठ का सामना"


टीवी पर आने वाले लोकप्रिय टीवी सीरियलों में 'सच का सामना' भी काफी लोकप्रिय होता जा रहा है। अक्सर झूठ बोलने वाले लोग भी अपना सारा काम छोड़कर इसे देखने बैठ जाते हैं। पर सच तो यह है कि इस कार्यक्रम ने कई लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक दिन घर से निकला तो देखा कि इस कार्यक्रम को देखकर मेरी पड़ोस वाली भाभी अपने पति से जिद कर रही है कि तुम भी 'सच का सामना' में जाकर भाग लो क्योंकि मैं जानना चाहती हूं कि मेरे सिवा तुम्हारा और कितना औरतों के साथ रिश्ता है। बिचारे उनके पति देव अपने पाक-साफ होने के बारे में कसमें खा-खाकर थक गए, लेकिन भाभी हैं कि विश्वास करने को तैयार ही नहीं। कहती हैं कि जब मशीन पर जाकर बोलोगे तो तभी मुझे यकीन होगा। खैर गली से निकलकर चौराहे पर पहुंचा तो देखा पिछले दिनों बनी नयी सड़क के ठेकेदार को लोगों की भीड़ ने घेर रखा है लोग पूछ रहे थे कि बताओ कितना पैसा खाया और कितना पैसा लगाया...? ठेकेदार साहब बोले आप तो जानते हैं मैं कितना ईमानदार हूं, पिछले लंबे समय से मैं ही यहां के सारे निर्माण कार्य करा रहा हूं, लोग बोले नहीं हमें आप पर यकीन नहीं, 'सच का सामना' में चलो, तब देना अपनी ईमानदारी का हिसाब... हम तभी भरोसा करेंगे। ठेकेदार साहब बड़ी मुश्किल से अपना पिंड छुड़ाकर भागे। अभी मैं चौराहे से मुख्य सड़क पर पहुंचा ही था कि देखा एक आईएएस अधिकारी अपनी पैंट संभालते हुए तेजी से भागे जा रहे हैं और उनके पीछे बहुत सारे लोग दौड़ रहे हैं। मैने एक व्यक्ति से पूछा कि क्या मामला है भाई...? तो वो महाशय बोले कि ये बहुत भ्रष्ट अधिकारी हैं पुलिस इन्हे पकड़ती नहीं, कहती है कि सबूत नहीं हैं इसलिए इन्हे पकड़कर सच का सामना में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। जिससे की सब साफ हो जाए और पुलिस कौई कार्रवाई कर सके। इतना सब देख-सुन कर आगे बढ़ा तो देखा कि सड़क किनारे गंदे कपड़ों में बैठा एक बदसूरत सा आदमी रो रहा है, उसके पास उसका सारा समान बिखरा पड़ा है, देखने में लग रहा था कि कई दिनों से बीमार है, मैने उसे देखकर पूछा कि तुम कौन हो भाई...? तुम्हे रो क्यों रहे हों...? क्या हुआ...? उसने बताया 'मैं झूठ हूं'। जब से 'सच का सामना' आया है तब से मेरा बुरा हाल है लोग सच बोल रहे है कौई मुझे पूछ ही नहीं रहा है। अब मेरे रहने का कहीं भी कौई ठिकाना नहीं रहा है समझ नहीं आता कि मैं क्या करुं...? सच पहली बार मेरा और "झूठ का सामना" हुआ था, उसकी बाते सुनकर मुझे लगा कि मुझे इसकी मदद करनी चाहिए... आखिर जात का पत्रकार जो हूं किसी को दु:खी कैसे देख सकता हूं ? मै भी उसके पास बैठ गया और और समस्या का समाधान सोचने लगा...तभी एक आईडिया आया और मैने उसे देश के कई महान 'नेताओं और मंत्रियों' का पता दे दिया, मैने कहा जाओ तुम यहां हमेशा खुश रहोगे। क्योंकि ना तो ये नेता और मंत्री कभी 'सच का सामना' में जाएंगे और ना ही तुम्हे कभी बेघर होना पड़ेगा। मेरी बात सुनकर वो खुशी से उछल पड़ा और खुशी-खुशी समान उठाकर चल दिया। मैं उसे लंबी आयु की शुभकामनाएं देकर आगे बढ़ गया।

वो भीगी लड़की...


आज जब दोपहर एक बजे घर से ऑफिस के लिए निकला तो देखा आसमान में काले बादल छाये हुए हैं दिल खुश हो उठा लगा कि शायद बारिश आने ही वाली हैं...बस इसी इंतजार में घर से गोलचक्कर तक आ गया (गोल चक्कर से ही ऑफिस के लिए ऑटों मिलते हैं) गोलचक्कर पर तीन-चार ऑटो खड़े थे और सवारियों को बुला रहे थे बारिश की उम्मीद में मैने एक किसान की तरह आसमान की ओर देखा और निराश मन से एक ऑटो में बैठ गया, कुछ ही मिनटों में ऑटो भर गया और चल दिया। अभी हम कुछ ही दूर पहुंचे थे कि अचानक से तेज बारिश शुरु हो गई...ऑटो में बैठे लोग उसमें लगे पन्नी के पर्दों की मदद से खुद को भीगने से बचाने की कोशिश करने लगे, मेरा तो बहुत मन हुआ भीगने का, पर मैं चाह कर भी भीग नहीं सकता था क्योंकि ऑफिस जो आना था। खैर तेज बारिश में ही हमारा ऑटो सेक्टर ग्यारह तक आ गया, उस ऑटो में मेरी तरफ वाली सीट पर चार लोग और सामने वाली सीट पर तीन लोग बैठै थे। मतलब एक सीट खाली थी। सैक्टर ग्यारह में तेज बारीश में भीगती हुई एक 8, 9 साल की बच्ची ने ऑटो को हाथ देकर रोका, ऑटो वाले ने ऑटो रोका और वो बच्ची जैसी ही ऑटों में चढ़ी सब लोग उस पर नाराज होने लगे... वजह थी कि वो पूरी तरह से भीगी हुई थी और उसके स्कूल बैग में से भी पानी टपक रहा था कौई उसे कह रहा था कि भीग गई है हमें मत भीगा, पैदल चली जा, कौई कह रहा था कि खड़ी रह, बैठ मत, हमारे कपड़े भीग जाएंगे, एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने तो यहां तक कह दिया कि 'नीचे ही बैठ जा'। वो बच्ची चुपचाप डरी-सहमी सी खड़ी रही। नवरात्रों में जिस कन्या के पैर छूकर आर्शीवाद लेते हैं उस कन्या को ये लोग पैरों के पास बैठने को कह रहे थे, आखिर मैने बहुत चुप रहने की कोशिश के बाद सामने वाली सीट पर बैठे एक 35-36 साल के आदमी को तेज आवाज में कह ही दिया कि जब पूरी सीट पर चार लोग बैठते हैं तो आप बैठाते क्यों नहीं..?? उसने गुस्से से मुझे देखा...इतने में ऑटो वाला भी तेज से बोल पड़ा, 'गुड़िया सीट है तो बैठती क्यों नहीं' इसके बाद उस सीट पर बैठे तीनों लोगों ने मुह बनाते हुए थोड़ा-थोड़ा खिसक कर उसे सीट दे दी। मेरे मन में एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर लोगों की मानवीय संवेदनाएं कहां खोती जा रहीं है, क्या इस बच्ची का यही कसूर है कि ये गरीब परिवार की बेटी है इसके पापा दूसरों की तरह इसे कार में लेने नहीं आ सकते... खैर सैक्टर 55 में वो बच्ची उतर गयी। पर उसके चेहरे से वो चिंता वो डर नहीं उतरा। ऑटो चल पड़ा...धीमी बारिश अभी भी जारी थी...जब ऑटो खोड़ा पर पहुंचा तो एक 18-19 साल की खूबसूरत लड़की ऑटो में चढ़ी...लोगों ने पूरी खुशी के साथ उसकी तरफ देखा और उसे जगह दी। जिन लोगों की आखों में उस बच्ची के लिए गुस्सा था अब उन्ही आंखों में गजब की चमक नजर आ रही थी, सब ललचाई निगाहों से लड़की को निहार रहे थे, कौई उसका बैग संभाल रहा था तो कौई दूसरों से थोड़ा और सरक कर जगह बनाने गुजारिश कर रहा था.... इस पूरे मामले में सबसे हैरत वाली बात यह थी कि ऑटो में बड़े आराम से बैठी ये खूबसूतक जवान लड़की भी अपने बैग सहित पूरी तरह से भीगी हुई थी....!!!