जूते ने तराशी नई संभावनाए !


पिछले कुछ समय में जूते ने जो तरक्की की है वो वास्तव में काबिले तारीफ है। आज जूते की पॉवर इतना बढ़ गयी है कि अच्छो-अच्छो के मन में जूते का डर बैठ गया है। जो काम जूता करा रहा है वो काम बडे़-बडे़ नही करा पाते। जूता बिना लाइसेंस का एक घातक हथियार बन गया है। दरअसल 14 दिसंबर 2008 का दिन जूते के लिए एक ऐतिहासिक दिन लेकर आया। जूते ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि अचानक उसकी किस्मत इतनी बदल जाएगी। असल में ये वो दिन है जिस दिन इराकी पत्रकार मुंतजर अली जैदी ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश पर जूता दे मारा था। इस घटना ने जूते को एक नया जन्म दे डाला। उसे एक नया और बेहतर मुकाम हासिल करा दिया।
जूते की इस कामयाबी ने मेरे एक व्यापारी मित्र को इतना प्रभावित किया कि उन्होने इसमें नयी संभावनाए तलाशनी शुरु कर दी। ये जनाब जूते का एक नयी कारखाना खोलने जा रहे है ! जिसमे स्पेशल क्वालिटी के उंम्दा जूते तैयार किए जाएंगे। मगर ये जूते पैरों की नहीं बल्की हाथों की शान बढाएंगे। कहने का मतलब इनका उपयोग पहनने के लिए नही बल्कि केवल मारने के लिए किया जाएगा। आप इन्हे मारकर किसी का भी विरोध कर सकते है! इसमें दो तरह के जूते बनाए जाएंगे, एक वीआईपी लोगों के लिए और दूसरे वीवीआईपी लोगों के लिए! इन जूतों को बनाने के लिए मखमल, रोशम, मोती, चंदन जैसी तमाम बहुमुल्य चीजों का उपयोग किया जाएगा। जूतों के दोनो तरफ फर के पर भी लगाए जाएंगे। जिससे ये हवा में उड़ते हुए दूर तक जाए। वैसे एक ट्रेनिंग सेन्टर खोलने की भी योजना बनाई जा रही है। जिसमे गोला फेंक की तरह जूते फेंकने का पशिक्षण दिया जाएगा। इन जूतों का प्रमोशन जे.जे. से करवाया जाएगा, अरे जे.जे. बोले तो जैदी और जरनैल। अगर ये मान जाते है तो जैदी से इंटरनेशनल लेवल पर और जरनैल से नेशनल लेवल पर प्रचार कराया जाएगा।
इन जूतों के लिए एक म्युजियम भी बनाया जाएगा, जिसमे वीआईपी और वीवीआईपी लोगों पर पडने वाले सारे जूते रखे जाएंगे ! और उससे पडने वाले फर्क को भी सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। साथ ही मैडम तुषार म्युजियम की तर्ज पर, एक म्युजियम में इन्हे मारने वालों की शान में उनके मोम के पुतले भी लगाए जाएंगे! विरोध जताने के इस नए तरीके से बहुत फायदा हो रहा है। इस विरोध का असर तत्काल प्रभाव से हो रहा है, और यह शूजमैन जरनैल साबित भी कर चुके हैं। वैसे खास बात यह है कि इन जूतों का शिकार नेता ही हो रहे हैं। लोग उन्हे जूते मार-मार कर विरोध जता रहे है। विरोध के इस तरीके का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि इससे शांति बढ रही है! क्योंकि इसमे ना तो नारेबाजी का शोर है और ना ही लोगों की भीड़। एक अकेला आदमी और अकेला जूता ही प्रभावी ढंग से काम कर रहा है। हालांकि यह अभी तक किसी को लगा नही है, पर बिना लगे भी यह ऐसी चोट दे रहा है, जिसका घाव भरे नहीं भर रहा है। बीजेपी के पीएम इन वेटिंग (अगले चुनाव के) के मन में तो इस जूते का डर इस कदर बैठ गया है कि उनकी सभाओं में उनके मंच के आगे जाल तक लगाया जा रहा है। नेताओं के द्वारा जूते से बचने की हर संभव कोशिश की जा रही है। और आने वाले समय में ऐसा भी हो सकता है कि कुछ नेता अपनी सभाओं में लोगों के नंगे पैर आने का फरमान जारी कर दें, ना रहेगा बास और ना बजेगी बांसूरी।
वैसे ये जूता रोजगार भी बहुत बढा रहा है। जूते की इस अप कमिंग फैक्टरी में तो भर्तीयां होंगी ही, साथ ही ट्रेनिंग सेन्टर, म्युजियम, जाल आदि से निश्चित रुप से रोजगार बढेगा। आईटी वालों ने भी जूतों से फायदा उठाते हुए कई ऐसे गेम बना दिए हैं जिसमें आप घर बैठकर किसी नेता को जूते मार सकते हैं। निशाना सही लगने पर विजेता भी बन सकते हैं। इन गेमों में बच्चे जमकर जूते बजा रहे है और अभी से जूते मारने की प्रेक्टिस कर रहे है इससे मन की भड़ास तो निकल ही रही है साथ ही निशाना भी सध ही रहा है! रही बात हम पत्रकारों की तो हमे तो मशाला मिल ही रहा है। जिस दिन एक बार भी जूता चल जाता है हम पूरे दिन उसे चलाते ही रहते है। जिससे टीआरपी तो बढ़ ही रही है और नेताओं के साथ-साथ दर्शक भी जूते का महत्व अच्छी तरह समझ रहे हैं। और सच तो यह है कि लोग जूते में दिलचस्पी दिखाने लगे हैं। शायद तभी आपने भी यह व्यंग पढ़ा।
(21 अप्रेल 2009 को लिखा गया)

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