'वो और मैं'


वो और मैं बहुत करीब आ गए
एक-दूजे में एक-दूजे की जान समाई है !
कुछ ज्यादा ही खास रिश्ता है हममें
ना मैं और ना वो मेरे बिन रह पाई है !!
पहले कभी-कभी ही होती थी मुलाकात
अब एक पल की भी नहीं जुदाई है !
कभी दिन ही कटता था उसके साए में
अब ना जाने कितनी रातें साथ बिताई हैं !!
उसने बड़े सलीके से पहचाना मेरे दर्द को
मैनें भी उसे खुद से जुड़ी हर बात बताई है !
मेरा साया बनकर हर वक्त साथ रहती है
जमाने ने सताया, उसने वफा निभाई है !!
उसके बिना मैं जब कभी, कहीं भी गया
वो साया बनकर पीछे-पीछे चली आई है !
एक लम्हा भी तन्हां नहीं छोड़ती मुझे
ऐसी मौहब्बत भला कब किसने निभाई है !!
कौई कहता हैं इस रिश्ते को बेशर्मी,
कुछ लोग कहते हैं इसे कि बेहय्याई हैं !
मेरे जिस्म में रुह बनकर रहती है हमेशा
मेरे साथ, मेरी अपनी, वो मेरी 'तन्हाई' है !!

2 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

Its so touching... and so well written... bahut acchhi lagi yaar aise hi likhte raho aur haan mujhe iski pic bhi bahut pasand aayi....

बेनामी ने कहा…

Its so touching... and so well written... bahut acchhi lagi yaar aise hi likhte raho aur haan mujhe iski pic bhi bahut pasand aayi....