आज जब दोपहर एक बजे घर से ऑफिस के लिए निकला तो देखा आसमान में काले बादल छाये हुए हैं दिल खुश हो उठा लगा कि शायद बारिश आने ही वाली हैं...बस इसी इंतजार में घर से गोलचक्कर तक आ गया (गोल चक्कर से ही ऑफिस के लिए ऑटों मिलते हैं) गोलचक्कर पर तीन-चार ऑटो खड़े थे और सवारियों को बुला रहे थे बारिश की उम्मीद में मैने एक किसान की तरह आसमान की ओर देखा और निराश मन से एक ऑटो में बैठ गया, कुछ ही मिनटों में ऑटो भर गया और चल दिया। अभी हम कुछ ही दूर पहुंचे थे कि अचानक से तेज बारिश शुरु हो गई...ऑटो में बैठे लोग उसमें लगे पन्नी के पर्दों की मदद से खुद को भीगने से बचाने की कोशिश करने लगे, मेरा तो बहुत मन हुआ भीगने का, पर मैं चाह कर भी भीग नहीं सकता था क्योंकि ऑफिस जो आना था। खैर तेज बारिश में ही हमारा ऑटो सेक्टर ग्यारह तक आ गया, उस ऑटो में मेरी तरफ वाली सीट पर चार लोग और सामने वाली सीट पर तीन लोग बैठै थे। मतलब एक सीट खाली थी। सैक्टर ग्यारह में तेज बारीश में भीगती हुई एक 8, 9 साल की बच्ची ने ऑटो को हाथ देकर रोका, ऑटो वाले ने ऑटो रोका और वो बच्ची जैसी ही ऑटों में चढ़ी सब लोग उस पर नाराज होने लगे... वजह थी कि वो पूरी तरह से भीगी हुई थी और उसके स्कूल बैग में से भी पानी टपक रहा था कौई उसे कह रहा था कि भीग गई है हमें मत भीगा, पैदल चली जा, कौई कह रहा था कि खड़ी रह, बैठ मत, हमारे कपड़े भीग जाएंगे, एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने तो यहां तक कह दिया कि 'नीचे ही बैठ जा'। वो बच्ची चुपचाप डरी-सहमी सी खड़ी रही। नवरात्रों में जिस कन्या के पैर छूकर आर्शीवाद लेते हैं उस कन्या को ये लोग पैरों के पास बैठने को कह रहे थे, आखिर मैने बहुत चुप रहने की कोशिश के बाद सामने वाली सीट पर बैठे एक 35-36 साल के आदमी को तेज आवाज में कह ही दिया कि जब पूरी सीट पर चार लोग बैठते हैं तो आप बैठाते क्यों नहीं..?? उसने गुस्से से मुझे देखा...इतने में ऑटो वाला भी तेज से बोल पड़ा, 'गुड़िया सीट है तो बैठती क्यों नहीं' इसके बाद उस सीट पर बैठे तीनों लोगों ने मुह बनाते हुए थोड़ा-थोड़ा खिसक कर उसे सीट दे दी। मेरे मन में एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर लोगों की मानवीय संवेदनाएं कहां खोती जा रहीं है, क्या इस बच्ची का यही कसूर है कि ये गरीब परिवार की बेटी है इसके पापा दूसरों की तरह इसे कार में लेने नहीं आ सकते... खैर सैक्टर 55 में वो बच्ची उतर गयी। पर उसके चेहरे से वो चिंता वो डर नहीं उतरा। ऑटो चल पड़ा...धीमी बारिश अभी भी जारी थी...जब ऑटो खोड़ा पर पहुंचा तो एक 18-19 साल की खूबसूरत लड़की ऑटो में चढ़ी...लोगों ने पूरी खुशी के साथ उसकी तरफ देखा और उसे जगह दी। जिन लोगों की आखों में उस बच्ची के लिए गुस्सा था अब उन्ही आंखों में गजब की चमक नजर आ रही थी, सब ललचाई निगाहों से लड़की को निहार रहे थे, कौई उसका बैग संभाल रहा था तो कौई दूसरों से थोड़ा और सरक कर जगह बनाने गुजारिश कर रहा था.... इस पूरे मामले में सबसे हैरत वाली बात यह थी कि ऑटो में बड़े आराम से बैठी ये खूबसूतक जवान लड़की भी अपने बैग सहित पूरी तरह से भीगी हुई थी....!!!
2 टिप्पणियाँ:
dis is entirely human nature..they want to do watever pleases dem..bt a child shud be treated like a child.u shud nt mentally harass dem, coz it has a lonlasting effect on dem.
this is nothing bt the wrk of human nature,, v want to do watever pleases us and watever pleases our eyes..but the treatment to the little girl was bad(it shud be discouraged)..u shud nt mentally harass kids .. it has a long lasting effect on dem..
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